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।ख्वाहिश।

*ख्वाहिश है ऐसी की मर कर भी कभी ना मरू।

*ना रहे शरीर तो क्या पर सदा इन वादियो मे रहूँ।

*बीत जाए ये पल ये जमाना पर सदा दिल मे रहूँ।

*जिन्दगी हैं छोटी पर नाम कई युगों का करू।

*राजेन्द्र के बोल*

एक कदम स्वच्छता की ओर

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स्वच्छ्ता का सही मायने क्या है ? शायद हम सभी ने सुना और पढ़ा भी होगा |पर क्या इस पर कभी ईमानदारी से अमल किया या एक संवाद समझ कर दिमाग के एक कोने मे रख दिये |

बचपन मे माँ से सुना होगा बेटा हमेशा साफ सुथरा रहना चाहिए अक्सर मेरी माँ कहा करती थी स्वच्छ शरीर मे स्वच्छ मन वाश करता है और सही भी है क्योकि स्वच्छता सकरत्मक पहलू को जन्म देती है

आज मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए इतना गिर चुका है की उसे अपने अलावा कुछ और दिखाई नहीं दे रहा है ,अपने स्वार्थ मे प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है |अगर ऐसा ही चलता रहा तो इसका भयानक परिणाम सामने आ सकता है और पूरे मानव जाति के पतन के कगार मे खड़ी नज़र आएगी ,इसका जिम्मेदार हम स्वयं होंगे

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जरा सोचो क्या हम अपने आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहे है ?क्या उनके लिए ऐसा समाज या वातावरण तैयार कर रहे है जिसमे वे सहज महसूस कर सके और हम नजर मिलने के काबिल रहा सके |क्या हम ऐसा समाज दे सकते है जिसमे स्वच्छ वातावरण और निरोग ज़िंदगी हो जहा कोई गंदगी न हो ,


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तो क्यो ना एक कदम स्वच्छता की ओर अभी से बढ़ाये, एक कदम अपने बच्चो के नाम ,एक कदम आने वाले पीढ़ी के नाम ,एक कदम स्वच्छ जिंदगी के नाम ,एक कदम उनके नाम जिंहे बहुत स्नेह करते है ,एक कदम पूरे मानव जाति के नाम |

हमारी एक कदम ना जाने कितने लोगो की जिंदगी बदल सकती है ,कितने परिवारों को खुशहाल कर सकती है ,एक नए समाज का निर्माण कर सकती है |

राम की इस धरती को, गौतम की इस भूमि को,नष्ट होने से बचाने मे अपना योगदान अवश्य दे और दूसरों को भी प्रेरित करे |महात्मा गांधी ने जो स्वप्न स्वच्छ भारत का देखे थे आज उसे साकार करे |

आओ आज से शपथ ले की वे सभी वस्तुओ का बहिष्कार करे जो स्वच्छता की राह बाधा उत्पन्न कर रही है

– राजेन्द्र साहू

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हमर छत्तीसगढ़ी भाखा के कविता

*गिल्ली डंडा के खेलईयां

* बोरे बासी के खवईयां

* तरिया के नहवईयां

* हमर गांव के टूरा मन हे बिरबिट करियां

* तभो इमन इहा के किशन कन्हैयां

*सबो टूरी म दिखय राधा रानी

* चार दिनईयां हे इखर मया के कहानी

* करेजा कस जानके समझे भौजी के देरानी

* मया म मोहाके टूरी मन होगे दिवानी

* ए डेहरी ले ओ डेहरी के छुछवईयां

* हमर गांव के टूरा मन हे बिरबिट करियां

*तभो इमन इहा के किशन कन्हैयां

*जांगर के कोनो नई हे कमी

* तभो नई करय कोखरो बनी

*मन के हे अब्बड़ घेघ्घर

*चलाना हे इमन ल अपन टेक्टर

* ए दुवारी ले ओ दुवारी के ठलहा बैठईयां

* हमर गांव के टूरा मन हे बिरबिट करियां

* तभो इमन इहा के किशन कन्हैयां

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बुरा ना मानो होली है

रंग – बिरंगे गुलालो मे उडी है खुशियाँ ।

पिचकारियों के पिचक से रंगी है गलियाँ ।

आज तो कांटों से होली खेली है कलियाँ ।

नंगारो के ताल मे फाग गाये भंवरे।

फागुन के राग मे रास रचाये सांवरे।

चारो ओर सजी है गुलालो के ठेले।

प्यार और खुशियों से सजी ये मेले।

आज आसमां से आसमानी धरती पे उतर आयी।

आज रंगो मे सजी खुशियों की बहार आई।

दोस्त क्या दुश्मन भी लगाने आये गुलाल।

यहाँ ना होने पर खुदा को भी है मलाल।

रंग – बिरंगे गुलालो मे उडी है खुशियाँ ।

हम है और तुम हो तो क्यो है देरियां।

भेदभाव मिटाकर बढ़ालो नजदीकियां

नफरत भुलाकर बाट लो खुशियाँ।

प्यार बाटने आयी हमारी यह टोली।

बुरा ना मानो होली है।

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भ्रष्टाचार

चारो और कुंडली मारकर है बैठा

अजर है जादू टोना भेद ना पाए बैगा

ना तेरा ना मेरा ये खेल हैं कैसा

बंदर उसी का नाच दिखाए जिसका है पैसा

नेता अफसरों ने बांधी रिश्वत की डोर

भ्रष्टो के अधीन हुई सत्ता की बागडोर

चारो ओर भ्रष्टाचार है फैला

पिसती जनता देश है रोता ।

रिश्वतखोर हर मोड़ है खड़ा

यहाँ लोकतंत्र का परिहास है होता

नेता अफसरो की मनमानी ।

यहाँ बात होती सिर्फ पैसे की जुबानी

बयां करती भ्रष्टाचार की कहानी

लेखक – राजेन्द्र साहू


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नए भारत का इतिहास

*भारत का इतिहास*

नए भारत की इतिहास बहुत पुरानी है।

राजगुरु सुखदेव भगत सिंह की कुर्बानी है ।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जवानी है ।

पावन गंगा की बहती पावन जल की पानी है ।

नए भारत की इतिहास बहुत पुरानी है ।

यही जन्मे गांधी की गांधीवादी है ।

यही जन्मे चंद्रशेखर की हिंसावादी है ।

यही लिखी हरिवंश राय की मधुशाला है ।

प्राचीन सौगात की रची नालंदा की पाठशाला है ।

यही घटी रामायण की घटना निराली है ।

यही बोली गीता की उपदेश जीवन में काम आनी है ।

नए भारत की इतिहास बहुत पुरानी है ।

यही ईद में हिंदू सेवइयां खाते हैं ।

यही दिवाली में मुस्लिम दीप जलाते हैं ।

जिसकी सर में सजती हिमालय की ताज है ।

यही मधुर लगती मिर्जा गालिब की हर अल्फाज है।

यही बहती संगीत में सात सुरों का साज है ।

कण कण में बसती वीरों के शहादत की कहानी है।

नए भारत की इतिहास बहुत पुरानी है ।

*लेखक – राजेन्द्र साहू*

Rajendra Sahu ke kavita”मैं लिखता रहा” published by -राजेन्द्र के बोल

मै लिखता रहा

उस रात लिखता रहा बस लिखता रहा

चांद टकटकी लगाए देखता रहा

हवा भी ठहर गई मेरे हर शब्द को चूमती

मैं लिखता रहा बस लिखता रहा

मैं अपने हर एहसास को पन्नों में पिरोता रहा

अपने सपनों की डायरी में ख्वाब सजाता रहा

रातें लंबी चांद ठहरा आसमान सुनहरा

सूरज चांद को जाने का आग्रह करता रहा

मैं बेरहम हो कर लिखता रहा बस लिखता रहा

अंधेरी रात में जुगनू दीप जलाती

ये हवा मेरे हर लफ्जों पर गुनगुनाती

धरती को बनाकर आसन खुले आसमान में

मैं लिखता रहा बस लिखता रहा

शब्दों की ईंट से शब्दों का इमारत बनाता रहा

ये जुगनू ये हवा यह सारा जहां साथ देता रहा

ऐसा लग रहा था यह पल रुक सा गया है

ऐसा लग रहा था यह जहां सिमट सा गया है

मैं मनमौजी होकर लिखता रहा बस लिखता रहा

जगते हुए भी सो गया था

अपने लफ्जो में ही खो गया था

ओस की बुंदे स्पर्श कर जगाती

भोर का एहसास कराती

शब्दों के मायाजाल में ऐसा फंसा

क्या रात क्या दिन कुछ नहीं पता

मैं लिखता रहा बस लिखता रहा

कवि-राजेन्द्र साहू