* दूध का रंग काला *
तुने जिसे जिंदगी देकर जीवन दिया
खुद भूखा रहकर खाना ख़िलाया
खुद प्यासा रहकर अपना दूध पिलाया
खुद खुले आसमान में रहकर आँचल में छुपाया ।
जब तुझे सहारा की जरुरत है तो
दूध का रंग पड़ गया काला
बचपन से जवानी तक साथ दिया
जो भी किया निस्वार्थ किया
जब तुझे उसकी जरुरत हैं तो
उसने अपना अलग दुनिया बसा डाला
पत्नी के मोह में उसने तुझे भुला डाला
जब आई तुझे खिलाने की बारी तो उसने छिन डाला तेरा हि निवाला
दूध का रंग पड़ गया काला ।
तुने तो रामको जन्म दिया पर बन बैठा रावण
तुने तो अपने बुढापे के सहारे को जन्म दिया पर उसने छिन डाला तेरा ही प्राण ।
फिर भी चुप रही जब तोड़ डाला विश्वास का माला
दूध का रंग पड़ गया काला ।
दी अनगिनत कुर्बानी पर उसने भुला दी तेरी कहानी
फिर भी प्रेम लुटाती जब उसने की मनमानी
खुद की पहचान मिटा दी उसके खातिर
फिर भी उसने मिटा दी तेरी हर निशानी
जीवन का खेल है निराला ‘
दूध का रंग पड़ गया काला
अपनी इस रचना देख ईश्वर भी रो रहा होगा ।
माँ को अपमानित देख स्वयं अपमानित हो रहा होगा
खुदा भी सोच रहा होगा क्या रचना कर डाला
माँ को अपमानित कर डाला ‘
दूध का रंग पड़ गया काला
राजेन्द्र साहू
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Nice
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एक उत्तम रचना मातोश्री के श्रीचरणों में….
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Thank you sir
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Nice
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Nice lines brother
So beautiful
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Thank you
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Nice line ..
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Nice line
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Bhut hi khubsurat
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Hurt touching line
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नाइस
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